भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश की वित्तीय प्रणाली को मजबूत और पारदर्शी बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। नए नियमों के तहत जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले (विलफुल डिफॉल्टर्स) पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। यदि किसी खाते को एनपीए (Non-Performing Asset) घोषित किया जाता है, तो छह महीने के भीतर उस पर “विलफुल डिफॉल्टर” का टैग लगाया जाएगा। इस कदम से ऐसे लोगों और कंपनियों पर लगाम लगेगी जो अपनी भुगतान क्षमता होने के बावजूद कर्ज नहीं चुकाते। आइए इस विषय को विस्तार से समझते हैं।
क्या है “विलफुल डिफॉल्टर” टैग?
विलफुल डिफॉल्टर टैग उन व्यक्तियों या कंपनियों पर लगाया जाता है जो:
- भुगतान क्षमता के बावजूद कर्ज नहीं चुकाते।
- कर्ज की राशि का गलत इस्तेमाल करते हैं।
- बैंक से लिए गए पैसे को तय उद्देश्य के अलावा अन्य कार्यों में खर्च करते हैं।
इस टैग के लगने के बाद, ऐसे कर्जदारों के लिए वित्तीय संस्थानों से नया लोन लेना लगभग असंभव हो जाता है। इसके साथ ही, उन्हें लोन रीस्ट्रक्चरिंग जैसी किसी भी सुविधा का लाभ नहीं मिलता, जिससे उनकी वित्तीय गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित होती हैं।
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RBI के नए नियमों के तहत कुछ प्रमुख प्रावधान तय किए गए हैं:
1. एनपीए खातों पर छह महीने में कार्रवाई
यदि किसी खाते को एनपीए घोषित किया जाता है, तो छह महीने के भीतर उसे विलफुल डिफॉल्टर का टैग दिया जाएगा।
2. 25 लाख रुपये से अधिक के कर्ज पर विशेष ध्यान
25 लाख रुपये से अधिक के कर्ज लेने वाले कर्जदारों पर खास नजर रखी जाएगी।
3. समीक्षा समिति की स्थापना
कर्जदारों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाएगा। इसके लिए एक समीक्षा समिति बनाई जाएगी, जो निष्पक्षता से प्रक्रिया की जांच करेगी।
4. 15 दिनों का समय
कर्जदार को 15 दिनों का समय दिया जाएगा ताकि वह लिखित रूप में यह साबित कर सके कि कर्ज न चुकाने की वजह जानबूझकर नहीं थी।
5. एनबीएफसी पर भी लागू होगा नियम
यह सख्त नियम न केवल बैंकों बल्कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) पर भी लागू होगा।
विलफुल डिफॉल्टर घोषित होने के गंभीर परिणाम
RBI के इस नए नियम के तहत विलफुल डिफॉल्टर घोषित होने पर कर्जदारों को कई वित्तीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा:
1. नया लोन नहीं मिलेगा
विलफुल डिफॉल्टर टैग लगने के बाद, किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान से नया कर्ज लेना असंभव हो जाएगा। यह प्रतिबंध न केवल व्यक्ति या कंपनी पर बल्कि उनकी संबंधित यूनिट पर भी लागू होगा।
2. लोन रीस्ट्रक्चरिंग की सुविधा खत्म
ऐसे कर्जदार अपने कर्ज को दोबारा रीस्ट्रक्चर नहीं करा सकेंगे। इसका मतलब है कि वित्तीय कठिनाई में भी उन्हें कोई राहत नहीं दी जाएगी।
3. व्यापारिक गतिविधियों पर असर
यह टैग लगने से कर्जदार की वित्तीय साख पूरी तरह खत्म हो जाएगी, जिससे उनकी व्यापारिक गतिविधियां रुक सकती हैं।
4. एनबीएफसी से कर्ज नहीं मिलेगा
यह नियम एनबीएफसी पर भी लागू होने के कारण, कर्जदार को बैंकों के साथ-साथ अन्य वित्तीय संस्थानों से भी कर्ज मिलने में दिक्कत होगी।
क्यों लागू किया गया यह नियम?
भारतीय वित्तीय प्रणाली में जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इससे बैंकों को भारी नुकसान होता है और उनकी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की संख्या बढ़ती है।
बैंकों के लिए नुकसानदायक
जब कर्जदार जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाते, तो बैंकों को अपने फंड वापस पाने में कठिनाई होती है। इससे बैंक के मुनाफे में कमी आती है और अन्य ग्राहकों को कर्ज देने की क्षमता घटती है।
वित्तीय अनुशासन स्थापित करने का प्रयास
RBI का यह कदम वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देने के लिए है। यह कर्जदारों को उनके वित्तीय उत्तरदायित्वों को गंभीरता से लेने की प्रेरणा देगा।
कर्जदारों को दिए गए अधिकार
हालांकि, इस प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए कर्जदारों को भी अधिकार दिए गए हैं:
1. अपनी बात रखने का मौका
हर कर्जदार को 15 दिनों का समय मिलेगा ताकि वह यह साबित कर सके कि कर्ज न चुकाने की वजह जानबूझकर नहीं थी।
2. समीक्षा समिति की भूमिका
समीक्षा समिति कर्जदार की दलीलों को सुनेगी और उसके बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
3. प्रक्रिया की पारदर्शिता
यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी कर्जदार के साथ अन्याय न हो और हर मामले की निष्पक्ष जांच हो।
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1. वित्तीय प्रणाली में अनुशासन
RBI का यह कदम वित्तीय प्रणाली में अनुशासन और पारदर्शिता स्थापित करेगा।
2. बैंकों को लाभ
बैंकों को अपने कर्ज की वसूली में मदद मिलेगी, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत होगी।
3. ईमानदार कर्जदारों को राहत
यह नियम ईमानदार कर्जदारों के हितों की रक्षा करेगा और उन्हें बेहतर वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराएगा।
4. विलफुल डिफॉल्टर्स पर दबाव
इस सख्त नियम से जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों पर दबाव बढ़ेगा और उन्हें अपने वित्तीय उत्तरदायित्व निभाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक का यह नया नियम कर्ज चुकाने में आनाकानी करने वालों के लिए एक सख्त चेतावनी है। विलफुल डिफॉल्टर घोषित होने के बाद, कर्जदार को न केवल वित्तीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, बल्कि उनकी साख भी खत्म हो जाएगी।
इस कदम से न केवल बैंकों को अपने एनपीए मामलों को सुलझाने में मदद मिलेगी, बल्कि देश की वित्तीय प्रणाली को भी अधिक मजबूत और पारदर्शी बनाया जा सकेगा। कर्जदारों को यह समझना होगा कि वित्तीय अनुशासन न केवल उनके लिए बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।